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22 जून से शुरू हो रहा है कामाख्या मंदिर का अंबुबाची मेला, जानिए इसकी खासियत - Somanshu News

22 जून से शुरू हो रहा है कामाख्या मंदिर का अंबुबाची मेला, जानिए इसकी खासियत

22 जून से शुरू हो रहा है कामाख्या मंदिर का अंबुबाची मेला, जानिए इसकी खासियत

 नई दिल्ली :  गुवाहाटी में स्थित कामाख्या देवी मंदिर, 51 शक्तिपीठों में शामिल है। इस मंदिर से जुड़ी मान्यताएं दूर-दूर तक फैली हैं, जिस कारण मंदिर के दर्शन करने से लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। हर साल इस मंदिर में अंबुबाची मेले का आयोजन होता है, जिसमें भाग लेने के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। चलिए जानते हैं इस मेले के बारे में।

मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथापौराणिक कथा के मुताबिक, एक बार जब राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया, तो उन्होंने पुत्री माता सती और भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। शिव जी के समझाने पर भी माता सती नहीं मानी और अपने पिता के यहां यज्ञ में चली गईं। जब उन्होंने वहादेखा कि उनके पिता शिव जी का अपमान कर रहे हैं, तो वह यह अपमान सह न सकीं और अग्नि कुंड में अपने शरीर का त्याग कर दिया।

जब यह बात शिव जी को पता चली, तो वह माता सती का शरीर उठाकर सम्पूर्ण विश्व में घूमने लगे। इससे पूरे विश्व में हाहाकार मच गया। तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से मां सती के शरीर के कई टुकड़े कर दिए और धरती के विभिन्न-विभिन्न स्थानों पर गिन गए। जहां-जहां माता सती के अंग गिए, वहां-वहां आज शक्तिपीठ स्थापित हैं। कहा जाता है कि असम के गुवाहाटी के कामगिरी में माता सती की योनि गिरी थी, जिस स्थान पर आज कामाख्या देवी मंदिर बना हुआ है।

मेले से जुड़ी मान्यताएंइस साल अंबुबाची मेले का आयोजन 22 जून से होने जा रहा है, जो 26 जून 2025 तक चलेगा। यह मेला देवी कामाख्या के वार्षिक मासिक धर्म का प्रतीक माना गया है। साथ ही तांत्रिकों के लिए भी इस मेला काफी महत्व रखता है। देश-विदेश से लाखों भक्त यहां पहुंचते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह वह समय है, जब माता रजस्वला होती हैं।

यह समय माता के विश्राम का समय माना जाता है और इस दौरान कामाख्या देवी मंदिर के गर्भगृह के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। इस अवधि में 3 दिनों तक, कोई पूजा नहीं, कोई दर्शन नहीं होते। चौथे दिन, शक्ति जागृत होती हैं और मां को ‘शुद्धि स्नान’ कराया जाता है। इस दिन मंदिर के द्वार भक्तों के लिए खोल दिए जाते हैं।

इस मंदिर में मिलने वाला प्रसाद भी काफी खास है। माना जाता है कि इस अवधि में मंदिर के गर्भगृह में देवी के पास एक सफेद रंग का कपड़ा रखा जाता है। देवी के रजस्वला होने के बाद यह कपड़ा लाल हो जाता है, जिसे भक्तों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है। मान्यता है कि यह प्रसाद के रूप में दिए गए इस वस्त्र से भक्तों को सुख और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।


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