छत्तीसगढ़ के रिजर्व फॉरेस्ट में बढ़ा टाइगर का कुनबा, 19 से 25 होने के प्रमाण
छत्तीसगढ़ में बाघ की संख्या एक बार फिर बढ़ने के संकेत मिले हैं। खबर इसलिए राहत देने वाली है, क्योंकि पिछले 8 साल में बाघों की संख्या का यहां अजीब ट्रेंड रहा है। 2014 में यहां के जंगलों में 46 बाघ होने की रिपोर्ट जारी की गई। चार साल बाद, यानी 2018 की रिपोर्ट ने और चौंकाया क्योंकि संख्या आधी से भी कम होकर 19 रह गई। इसके बाद, पिछले तीन साल में बाघों के संरक्षण पर 13 करोड़ खर्च किए जा चुके हैं।
माना जा रहा है कि शुक्रवार 29 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस पर केंद्र सरकार की ओर से जारी होने वाली रिपोर्ट में छत्तीसगढ़ में बाघों की संख्या में 6 की वृद्धि दर्शाई जा सकती है। बाघों की गणना करीब छह महीने पहले निर्धारित प्रक्रिया के तहत शुरू की गई थी।
इस बार नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी ने उन्हीं बाघों को गिनती में शामिल किया, जिनकी तस्वीरें जंगल में अलग-अलग जगह छिपाकर लगाए गए कैमरे में क्लिक हुई। भास्कर ने छत्तीसगढ़ के तीनों टाइगर रिजर्व फॉरेस्ट उदंती सीतानदी, इंद्रवती और अचानकमार के जिम्मेदार अफसरों से रिपोर्ट ली। उन्होंने जंगल के अलग-अलग इलाकों से कैमरे में क्लिक जो तस्वीरें नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी को भेजी हैं, उसके बारे में जानकारी ली। उन्होंने जो जानकारी दी उसके मुताबिक इंद्रावती में आश्चर्यजनक रूप से तीन टाइगर बढ़ने की उम्मीद है।
यहां जंगलों में जहां जहां कोर एरिया में 245 से ज्यादा कैमरे लगाए गए थे, सभी में बाघों की तस्वीरें क्लिक हुई हैं। बाघों की तस्वीरों की स्क्रूटनी से ही पता चला है कि पहले वहां केवल तीन बाघ थे, अब छह बाघ जंगल के अलग-अलग इलाके में घूम रहे हैं। इसी तरह अचानकमार में 245 कैमरों में दो और उदंती सीतानगर टाइगर रिजर्व फॉरेस्ट में 55 कैमरों में एक बाघ बढ़ने के संकेत मिले हैं। 2018 की गणना में अचानकमार में केवल 5 बाघ की मौजूदगी बतायी गई थी, वहीं अभी कैमरे के ट्रैप में 7 बाघ विचरते दिखे हैं। इसी तरह उदंती सीतानदी में एक से बढ़कर संख्या 2 हो गई है।
आकंड़ों में जानें कितने टाइगर
इंद्रावती टाइगर रिजर्व
2014 – 12
2018 – 3
2022 उम्मीद – 3
उदंती-सीतानदी रिजर्व
2014 – 4
2018 – 1
2022 उम्मीद – 1
अचानकमार रिजर्व
2014 – 12
2018 – 5
2022 उम्मीद – 2
अभी शिफ्टिंग का प्लान अटका
प्रदेश के अचानकमार टाइगर रिजर्व बाघों की संख्या की बढ़ने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार गांवों को खाली करने का प्लान बनाया। इसके लिए 2019 प्रस्ताव बनाया गया था। इसके तहत 19 गांव को शिफ्ट किया जाना है। अब तक केवल तीन गांव, छिहद्दा विरार पानी, तिलई डबरा के 128 परिवारों को लोरमी रेंज में बसाया गया। अभी तीन गांव को और बसाने के लिए प्रस्ताव तैयार कर लिया है। इस बार नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी ने कई तरह के बाघों को गिनती में शामिल किया।
संख्या बढ़ाने की कोशिश
प्रदेश में बाघों को बचाने और संख्या बढ़ाने की हर स्तर पर कोशिश जारी है। टाइगर रिजर्व के कोर एरिया से गांवों को शिफ्ट करने के प्लान पर भी मंथन जारी है।
पीवी नरसिंह राव, पीसीसीएफ-वाइल्ड लाइफ
पहली बार; अनाथ हुए शावकों को पाल रही बाघिन मौसी
किसी बाघिन की मौत के बाद अनाथ हुए उसके शावकों को उस बाघिन की बहनें तक नहीं पालतीं, लेकिन गुरु घासीदास टाइगर रिजर्व से लगे संजय डुबरी टाइगर रिजर्व में ऐसा हो रहा है। वन्यप्राणी विशेषज्ञों का दावा है कि यह दुनिया में पहला मामला हो सकता है। यहां मार्च 2022 में एक बाघिन टी-18 की मौत हुई तो उसके 4 शावक अनाथ हो गए। कुछ दिन में एक की मौत भी हो गई। तब इन शावकों को उनकी मौसी यानी टी-28 नाम की बाघिन ने सहारा दिया। वह इन शावकों को अपने 3 बच्चों के साथ पाल तो रही ही है, शिकार करना भी सिखा रही है।
जबकि मृतक बाघिन की एक और बहन टी-17 ने इन शावकों को एक-दो दिन में भगा दिया था, जबकि वह भी अपने 3 शावकों को पाल रही है। मृत बाघिन के शावकों को उनकी बाघिन मौसी पाल रही है, इस घटनाक्रम से मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के विशेषज्ञ ही नहीं बल्कि 200 देशों में वन्य प्राणियों के
लिए काम करने वाली संस्था डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के अधिकारी भी हैरान हैं। छत्तीसगढ़ के वन अफसरों ने भी फारेस्ट रिजर्व जाकर इन शावकों को देखा और उम्मीद जताई है कि इनसे गुरु घासीदास टाइगर रिजर्व में बाघ बढ़ेंगे क्योंकि संजय डुबरी रिजर्व से अलग होकर ही गुरु घासीदास टाइगर रिजर्व अस्तित्व में आया है।
मां की मौत के बाद बचते नहीं शावक
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के वरिष्ठ परियोजना अधिकारी उपेंद्र दुबे ने बताया कि अगर बाघिन की मौत हो जाए तो उसके अधिकांश शावक बचते नहीं हैं। उन्हें या तो बाघ मारकर खा जाते हैं, दूसरे वन्य जीवों का शिकार बन जाते हैं, या फिर भूख से मौत हो जाती है। संजय डुबरी रिजर्व के संचालक वीपी सिंह ने बताया कि बाघिन के जिस शावक की मौत हुई, संभवत: उसे उसके पिता टी-26 ने मारा हो, क्योंकि उसे लगा होगा कि वह प्रतिद्वंद्वी न हो जाए। नर बाघ अपने बच्चे को भी एक से डेढ़ साल तक ही अपने क्षेत्र में रहने देता है, मां भी डेढ़-दो साल बाद बच्चों को खदेड़ने लगती है, शिकार में हिस्सा नहीं देती ताकि वे आत्मनिर्भर बनें।