अरावली पहाड़ियों पर बना वह रहस्यमयी मंदिर, जहां रात में जाने पर लोग बन जाते हैं पत्थर! किसका झेल रहा श्राप

अरावली पहाड़ियों पर बना वह रहस्यमयी मंदिर, जहां रात में जाने पर लोग बन जाते हैं पत्थर! किसका झेल रहा श्राप

भगवान की अवधारणा हमारी वैदिक मान्यताओं में कण-कण में विराजमान होने की बात कही गई है. तो फिर क्या पत्थर और क्या पानी. सृष्टि का हर कण ईश्वर का बनाया हुआ है.

इसलिए वो हर कण में विराजमान है. जैसे जैसे हमने ईश्वर की वो रहस्यमयी शक्ति का आभास करते गए, उन्हें हम एक आकार, एक रूप देते गए. इसी प्रक्रिया में इस पत्थर की मूर्तियों में देवताओं के चेहरे उकेरे गए, इसी धार्मिक विकास यात्रा में मंदिरों के लिए एक खास ढांचा बनना शुरू हुआ. ऐसा ही एक राजस्थान में है, जिसकी बनावट इतनी शानदार है कि उसे राजस्थान का खजुराहो कहा जाता है. यहां भगवान शिव जैसे तमाम देवी देवता पत्थर की मूर्तियों में उकेरे गए हैं. लेकिन मंदिर में आते ही पत्थर हो जाने का शाप कुछ ऐसा है, कि लोग आज भी यहां आने से डरते हैं.

तो क्या किराड़ू में जो रुकेगा, वो रात में पत्थर बन जाएगा?

राजस्थान के किराड़ू मंदिर में जिधर भी नजर दौड़ाइए, वहां यहां पत्थर ही पत्थर बिखरे मिलेंगे. कहते हैं, ये पत्थर नहीं, बुत बने हुए वो लोग हैं, जो इस मंदिर की शाप कथा नहीं जानते थे और गलती से यहां रात में आ गए. कुछ लोग उस दिन भी पत्थर के बुत बन गए, जब यहां आए एक साधु ने मंदिर को शाप दिया था- यहां जो भी आएगा पत्थर हो जाएगा.

किराड़ू मंदिर की इस रहस्यमयी पहेली 12वीं शताब्दी की बताई जाती है. तब ये मंदिर किसी शाही किले जैसा खूबसूरत हुआ करता था. बीच रेगिस्तान में ये मंदिर अपनी बनावट में ये इतना अनूठा था कि इसकी चर्चा पूरे भारतवर्ष के साम्राज्यों के साथ इरान इराक और यूरोप तक हुआ करती थी.

कैसे ध्वस्थ हुआ इतना भव्य मंदिर?

तो फिर हिंदू आस्था का इतना बड़ा प्रतीक आखिर कैसे ध्वस्त हुआ? जिस मंदिर के बारे में कहा जाता था कि ये शहस्त्राब्दियों तक नहीं टूटेगा, वो उसका रूप ऐसा वीभत्स कैसे हो गया…? इसे लेकर दो तरह की थ्योरी लोग मानते हैं. जिसमें से एक थ्योरी विदेशी आक्रांताओं को लेकर है. 12वीं सदी में ये मंदिर कहा जाता है अलाउद्दीन खिलजी की आंख की किरकिरी बन गया था.

ऐतिहासिक दस्तावेज तो ये इशारा करते हैं कि किराड़ू मंदिर विदेशी आक्रांताओं के हाथों ध्वस्त हुआ. लेकिन एक सवाल ये उठता है, कि इतनी बड़ी ऐतिहासिक विरासत का जीर्णोधार क्यों नहीं कराया गया. इसकी वजह कहीं वही किवदंती तो नहीं, कि ये पूरा इलाका एक साधु के शाप से ग्रसित है?

इस मंदिर को ईश्वरीय शक्ति जागृत करने के लिए एक खास लोकेशन और वास्तु विधान के साथ बनाया गया था. परमार वंश के राजा दुशाल राज ने इस मंदिर के लिए अरावली की पहाड़ियों के बीच अनूठी जगह चुनी थी. तीन पहाड़ियों की घाटी के बीच एक कुएं की तरह विकसित किया गया पूरा किराड़ू नगर…फिर ऐसा क्या हुआ, जो ये मंदिर अपूज्य हो गया?

परिसर में कभी हुआ करते थे 5 मंदिर

कभी इस परिसर में पांच मंदिर हुआ करते थे, लेकिन आज विष्णु और सोमेश्वर मंदिर ही थोड़ी ठीक हालत में है, बाकी के तीन मंदिर और नगर का पूरा ढांचा खंडहर में तब्दील हो चुका है.

किराड़ू मंदिर खंडहर में कैसे तब्दील हुआ, इसके पीछे जो साधु की शाप कथा सुनाई जाती है, उसके मुताबिक, किराड़ू नगर की समृद्धि को सुनकर एक साधू अपने शिष्य के साथ यहां आए थे. शिष्य को नगर में भिक्षाटन के लिए छोड़कर खुद पहाड़ी पर तपस्या करने चले गए. साधु ने शिष्य को हिदायत दी थी कि पांचो उंगलियों से भिक्षा मिले, तभी ग्रहण करना. लेकिन किराड़ू नगर में दान देने के लिए तीन उंगलियों का ही इस्तेमाल होता था.

इस तरह पूरे एक साल तक साधु के शिष्य ने किराड़ू नगर में भिक्षा नहीं ली. एक कुम्हारिन के सहयोग से वो किसी तरह एक साल तक जिंदा रहा. 1 साल बाद जब शिष्य ने तपस्या से उठे साधु को आपबीती सुनाई तो वो नाराज हो गए. शिष्य बताता है कि 12 महीने में उसके साथ क्या हुआ, तो साधु को गुस्सा आता है, वो कहता है कि मान सम्मान नहीं हुआ, जिसने भी सहायता की, उसे बोलो कि वो नगरी छोड़कर चली जाए.

साधु के श्राप से लोग बन गए पत्थर

लेकिन जब तक साधु के शिष्य की मदद करने वाली किराड़ू नगर से बाहर जाती, सबकुछ खंडहर में तब्दील हो चुका था. कुम्हारिन ने मुड़ के देखा, तो वहीं पत्थर की बुत बन गई. एक वक्त था, जब पूरे किराड़ू परिसर में पत्थर की बुत बनी आदमकद आकृतियां पाई जाती थी. कहा जाता है, ये साधु के उसी शाप का नतीजा है.

किराड़ू का ये पूरा खंडहर आज भी 900 साल पुराने साधू के उसी शाप दोहराता है. खासतौर पर रात में, जब लोग यहां आने बचते हैं. किराड़ू के मंदिरों की यात्रा के दौरान एक चीज जो हमने नोटिस की, वो ये, कि लोग इसकी मौजूदा हालत से नाखुश है. ये ऐतिहासिक मंदिर सैलानियों को तो खींच लाता है, लेकिन ये खुद इतना खस्ताहाल है कि अगले कुछ बरसों में इसके वजूद पर खतरा साफ दिखता है.

बाड़मेर के बीच रेगिस्तान में ये मंदिर सिर्फ कहने को पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है, लेकिन विभाग की तरफ से कोशिश जो जैसा है, उसे ही बचाने की लगती है. लोग कहते हैं, इतनी बड़ी धरोहर के लिए ये कोशिश नाकाफी है. किराड़ू मंदिरों के रहस्यों के साथ एक विवाद इसकी धार्मिक विरासत को लेकर भी था. कुछ ऐतिहासिक दस्तावेजों में इसे जैन मंदिर बताया गया था, लेकिन मंदिर की दीवारों पर खुदे शिलालेख और मूर्तियां और इनके पूजन का तरीका कुछ और ही कहता है.

मिथक तोड़ने की हो रही कोशिश

अब रही बात किराड़ू मंदिर को साधु का शाप और रात में यहां जान से पत्थर बन जाने की किवदंती, तो इस मिथक को भी तोड़ने की कोशिश कुछ लोगों ने की. ये इसी साल की बात है, जब अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हो रही थी, सारे देश में दीप जलाए जा रहे थे, तो स्थानीय लोगों ने किराड़ू मंदिर को भी दीपों से रौशन किया था.

मिथकों में जिंदा किराड़ू मंदिरों की शाप कथा खत्म करने के लिए कई कोशिशे हो रही हैं. इन्हीं में से एक है किराड़ू महोत्सव जैसा आयोजन. ये पूरी पहल इसलिए, कि किराड़ू जैसी विरासत से लोग खौफ नहीं, दिल मे इसकी छवियां लेकर जाएं, कोई दहशत न हो.


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