सारंगी का प्रतापः साधु बनने की थी चाह, अरबपति को हराकर संसद पहुंचे ‘ओडिशा के मोदी’; 69 साल में भी साइकल सवारी
सादगी और सेवा ही उनका ध्येय है। सामान्य स्वयंसेवक से लेकर विधानसभा और संसद की सीढ़ी चढ़ने तक, केंद्र सरकार में मंत्री बनाए जाने और फिर हटाए जाने पर भी उनके व्यवहार में रत्ती भर भी फर्क नहीं आया। ये हैं ओडिशा के बालासोर लोकसभा संसदीय क्षेत्र से लगातार दो बार के सांसद प्रताप चंद्र सारंगी। बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और इसके विभिन्न आनुषंगिक संगठनों से जुड़े रहे प्रताप चंद्र सारंगी वर्ष 2019 में उस समय एकाएक राष्ट्रीय फलक पर चर्चा में आ गए थे, जब उन्हें प्रधानमंत्री मोदी के दूसरे कार्यकाल में राज्यमंत्री बनाया गया था।
घास-फूस की झोपड़ी में रहते थे सारंगी
घास-फूस की झोपड़ी में रहने वाले सारंगी आज भी लग्जरी वाहनों के बजाय साइकिल से चलना ज्यादा पसंद करते हैं। विधायक की पेंशन और सांसद के वेतन का ज्यादातर हिस्सा वह गरीब बच्चों की पढ़ाई और सामाजिक कार्यों में खर्च कर देते हैं। सारंगी अब फिर चर्चा में हैं। बृहस्पतिवार को डॉ. भीमराव आंबेडकर को लेकर हो रहे प्रदर्शन में लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के साथ आए विपक्षी सांसदों से हुई धक्का-मुक्की में उनके सिर में गंभीर चोट आ गई।
साधारण पृष्ठभूमि
अगले महीने चार जनवरी को सत्तर वर्ष के होने जा रहे प्रताप चंद्र सारंगी का जन्म वर्ष 1955 में उड़ीसा (अब ओडिशा) राज्य के बालासोर जिले के गोपीनाथपुर गांव में एक साधारण ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम गोबिंद चंद्र सारंगी और मां का नाम सिद्धेश्वरी सारंगी था। 1975 में उत्कल विश्वविद्यालय से संबद्ध फकीर मोहन कॉलेज से बीए की डिग्री हासिल करने वाले सारंगी बचपन में ही समाज सेवा से जुड़ गए थे। वह राजनीति में आने से पहले नीलगिरी कॉलेज में हेड क्लर्क भी रहे थे।
धर्मांतरण का विरोध
सारंगी कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी करने लग गए थे, लेकिन उन्होंने अविवाहित रहकर समाज सेवा के कार्य को प्राथमिकता दी। आरएसएस के पदाधिकारियों के साथ मिलकर उन्होंने एकल विद्यालय की स्थापना की। इस एकल विद्यालय के तहत उन्होंने आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा की अलख जगाई। उन्होंने ओडिशा राज्य में गरीब और अशिक्षित लोगों को प्रलोभन देकर धर्मांतरण कराने वाली ईसाई मिशनरियों का भी खुलकर विरोध किया।
सारंगी की साइकिल
प्रताप चंद्र सारंगी बचपन से ही बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उनकी संगठन क्षमता से हर कोई भली-भांति परिचित था। ओडिशा में भारतीय जनता पार्टी की जड़ें जमाने में सारंगी का अहम योगदान रहा है। वह विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल में भी विभिन्न पदों पर रहे। वर्ष 2004 से 2014 तक नीलगिरी विधानसभा क्षेत्र से दो बार भाजपा के विधायक चुने गए। 2014 में वह बालासोर लोकसभा क्षेत्र से पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े, लेकिन हार गए।
सारंगी चुनाव हारने के बावजूद साइकिल से समाज सेवा में लगे रहे और 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने तत्कालीन सांसद रबींद्र कुमार जेना को पराजित किया। अरबपति जेना का चुनाव प्रचार लग्जरी वाहनों के तामझाम के साथ होता था, तो दूसरी ओर सारंगी अपनी साइकिल पर और संगठन के लोगों के साथ जनता के बीच प्रचार में लगे रहे। परिणाम आया तो अरबपति सांसद बारह हजार से ज्यादा वोटों से चुनाव हार गए। सारंगी 2024 में फिर से बालासोर लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए।
बनना चाहते थे साधु
ओडिशा के मोदी के नाम से मशहूर सारंगी को लोग प्यार से ‘नाना’ कहकर बुलाते हैं। सारंगी ने बचपन में ही अपने लक्ष्य निर्धारित कर लिए थे। पहला या तो वह संन्यासी बनेंगे या फिर देश के लिए कुछ करेंगे। संन्यासी बनने के लिए वह रामकृष्ण मठ भी गए थे, लेकिन मठ वालों ने विधवा मां की देखभाल करने पर जोर देकर उन्हें वापस भेज दिया। बच्चों की शिक्षा के साथ ही वह गोरक्षा अभियान से भी जुड़े हैं और किसानों के मुद्दों पर खुलकर अपनी बात रखते हैं। लोकसभा चुनाव 2024 के हलफनामे के अनुसार, उनकी कुल संपत्ति करीब 49 लाख रुपये है। उनके ऊपर करीब नौ आपराधिक मामले भी दर्ज हैं।
कई भाषाओं के ज्ञाता
सारंगी जब पहली बार 2004 में विधानसभा चुनाव लड़ने जा रहे थे, तो उनकी मां ने उनसे वादा लिया था कि वह जीवन में कभी रिश्वत नहीं लेंगे और न ही कभी झूठ बोलेंगे। स्वामी विवेकानंद को अपना आदर्श मानने वाले सारंगी को अपनी मातृभाषा उड़िया के अलावा हिंदी, अंग्रेजी, बांग्ला, संस्कृत आदि भाषाओं का ज्ञान है। उन्होंने संसद में अपने पहले भाषण में ही हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी का इस्तेमाल कर खूब वाहवाही बटोरी थी।