भोजली प्रकृति संरक्षण का पर्व :विधायक बालेश्वर साहू
मित्रता और प्रकृति के प्रति समर्पण का मिसाल है भोजली
विधायक बालेश्वर साहू ने क्षेत्रवासियों एवं प्रदेशवासियों को संदेश देते हुए कहा कि लोक संस्कृति के मूल में प्रकृति के प्रति कृतज्ञता और उसके मानवीय एकीकरण की भावना की जलधार संचरित रहती है। छत्तीसगढ़ में इसी तरह का एक पर्व है भोजली। इसका अर्थ है भूमि में जल हो। इसके लिये महिलायें भोजली देवी अर्थात प्रकृति की पूजा करती हैं। भोजली गेंहू के पौधे हैं जो श्रावण शुक्ल नवमी में बोए जाते है और भादो की प्रथमा को रक्षाबंधन के बाद विसर्जित किए जाते हैं भोजली विसर्जन का यह उत्सव दर्शनीय होता है। जंवारा बोहे लोग जिसमें कन्याएं, महिलाएँ ज्यादा होती हैं, तालाब की ओर गीत गाते चली जाती हैं – देवी गंगा, देवी गंगा… लहर तोर अंगा…सावन आने के साथ ही लडकियां एवं नवविवाहिताएं अच्छी बारिश एवं भरपूर फसल भंडार की कामना करते हुए प्रतीकात्मक रूप में भोजली का आयोजन करते हैं ।
भोजली एक टोकरी में भरे मिट्टी में धान, गेहूँ, जौ के दानों को बो कर तैयार किया जाता है । उसे घर के छायादार जगह में स्थापित किया जाता है । उस में हल्दी पानी डाला जाता है। गेहूँ के दाने धीरे धीरे पौधे बढ़ते हैं, महिलायें उसकी पूजा करती हैं एवं भोजली दाई के सम्मान में भोजली सेवा गीत गाये जाते हैं । सामूहिक स्वर में गाये जाने वाले भोजली गीत छत्तीसगढ़ की पहचान हैं। भोजली विसर्जन की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं दी।