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कार्तिक माह में रोजाना करें ये आरती, प्रभु श्रीहरि के साथ मिलेगी मां लक्ष्मी की कृपा - Somanshu News

कार्तिक माह में रोजाना करें ये आरती, प्रभु श्रीहरि के साथ मिलेगी मां लक्ष्मी की कृपा

कार्तिक माह में रोजाना करें ये आरती, प्रभु श्रीहरि के साथ मिलेगी मां लक्ष्मी की कृपा

 कार्तिक माह में भगवान विष्णु की आराधना से साधक को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। इस माह को भगवान विष्णु के साथ-साथ मां लक्ष्मी और तुलसी जी की पूजा के लिए भी खास माना गया है। ऐसे में शुभ परिणाम के लिए रोजाना तुलसी पूजन के दौरान तुलसी जी की आरती भी जरूर करनी चाहिए। चलिए पढ़ते हैं तुलसी माता की आरती।

तुलसी माता की आरतीतुलसी महारानी नमो-नमो,
हरि की पटरानी नमो-नमो ।

धन तुलसी पूरण तप कीनो,

शालिग्राम बनी पटरानी ।
जाके पत्र मंजरी कोमल,
श्रीपति कमल चरण लपटानी ॥

तुलसी महारानी नमो-नमो,
हरि की पटरानी नमो-नमो ।

धूप-दीप-नवैद्य आरती,
पुष्पन की वर्षा बरसानी ।
छप्पन भोग छत्तीसों व्यंजन,
बिन तुलसी हरि एक ना मानी ॥

तुलसी महारानी नमो-नमो,
हरि की पटरानी नमो-नमो ।

सभी सखी मैया तेरो यश गावें,
भक्तिदान दीजै महारानी ।
नमो-नमो तुलसी महारानी,
तुलसी महारानी नमो-नमो ॥

तुलसी महारानी नमो-नमो,
हरि की पटरानी नमो-नमो ।

कार्तिक माह में रोजाना शाम के समय तुलसी के पास घी का दीपक भी जरूर जलाना चाहिए। साथ ही तुलसी की 7 या 11 बार परिक्रमा भी जरूर करनी चाहिए। तुलसी जी की आरती के साथ-साथ आप तुलसी जी के मंत्रों का जप करके भी लाभ प्राप्त कर सकते हैं। ऐसा करने से आपको सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। बस इस बात का ध्यान रखें कि एकादशी और रविवार के दिन तुलसी में जल अर्पित करने से बचना चाहिए।

तुलसी जी के मंत्र1. महाप्रसाद जननी सर्व सौभाग्यवर्धिनी, आधि व्याधि हरा नित्यं तुलसी त्वं नमोस्तुते।।

2. तुलसी गायत्री –

ॐ तुलसीदेव्यै च विद्महे, विष्णुप्रियायै च धीमहि, तन्नो वृन्दा प्रचोदयात् ।।

3. तुलसी स्तुति मंत्र –

देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः
नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।
तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।
धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।।
लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।
तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।।

4. तुलसी नामाष्टक मंत्र –वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।
पुष्पसारा नंदनीय तुलसी कृष्ण जीवनी।।
एतभामांष्टक चैव स्त्रोतं नामर्थं संयुतम।
य: पठेत तां च सम्पूज्य सौश्रमेघ फलंलमेता।।


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