संस्कृत कॉलेज रायपुर में वेद विभाग की नियुक्ति पर घोटाले के आरोप

संस्कृत कॉलेज रायपुर में वेद विभाग की नियुक्ति पर घोटाले के आरोप

रायपुर :  शासकीय संस्कृत कॉलेज रायपुर का वेद विभाग इन दिनों भारी विवादों में है। अतिथि सहायक प्राध्यापक  की नियुक्ति को लेकर उठे सवाल अब राज्यभर में भर्ती प्रक्रिया की पारदर्शिता और छत्तीसगढ़ के स्थानीय युवाओं के अधिकारों की लड़ाई का बड़ा मुद्दा बन चुके हैं। आरोप है कि कॉलेज प्रशासन ने न केवल शासन की ‘अतिथि व्याख्याता भर्ती नीति 2024’ का उल्लंघन किया, बल्कि बिना विज्ञापन और बिना अनुमति के बिहार के अभ्यर्थी को गुपचुप तरीके से नियुक्त कर दिया, जिससे स्थानीय अभ्यर्थियों में भारी आक्रोश फैल गया है। वही अंतिम सूची में शुभम तिवारी का नाम ही नहीं है जो 8 अगस्त को प्रकाशित हुआ था।

विवाद की जड़ — नियुक्ति में “गुपचुप खेल” का आरोप

27 जुलाई 2025 को कॉलेज ने पत्र क्रमांक 390/2025 के तहत वेद विभाग के एक पद हेतु विज्ञापन जारी किया था। 4 अगस्त तक आवेदन प्राप्त हुए और 6 अगस्त को मेरिट-सह दावा-आपत्ति सूची जारी की गई। इस सूची में छत्तीसगढ़ के कई योग्य अभ्यर्थी शामिल थे।

लेकिन चयन सूची में केवल लीकेश्वर शर्मा नामक अभ्यर्थी को जगह दी गई।

विवाद तब बढ़ा जब विभाग में वर्षों से कार्यरत एक अनुभवी अतिथि सहायक प्राध्यापक ने 8 अक्टूबर को इस्तीफ़ा दे दिया।

नियमों के अनुसार फिर से नया विज्ञापन जारी होना चाहिए था, लेकिन कॉलेज प्रशासन ने इसकी बजाय —

✔ न नया विज्ञापन निकाला

✔ न शासन से अनुमति ली

✔ और सीधे 6 नवंबर को दावा-आपत्ति सूची से बाहर किए गए बिहार के अभ्यर्थी डॉ. शुभम तिवारी को बुलाकर जॉइनिंग करा दी

सबसे गंभीर तथ्य यह है कि डॉ. शुभम तिवारी अंतिम चयन सूची में थे ही नहीं। इसके बावजूद उनकी नियुक्ति कर दी गई, जिसे शिक्षा विशेषज्ञ ‘न्यायिक रूप से अवैध नियुक्ति’ की श्रेणी में बता रहे हैं।

शासनादेशों की धज्जियाँ — नीति, आदेश और प्रक्रिया सबकी अनदेखी

इस नियुक्ति से राज्य शासन की कई नीतियों का सीधा उल्लंघन हुआ है:

1️⃣ अतिथि व्याख्याता भर्ती नीति 2024 (21 जून 2024)

स्पष्ट रूप से लिखा — ‘छत्तीसगढ़ के मूल निवासी अभ्यर्थियों को वरीयता दी जाएगी।’

2️⃣ 18 अगस्त 2025 का शासन आदेश (ESTB/7399/2025)

निर्देश — ‘समान योग्यता होने पर स्थानीय अभ्यर्थियों को प्राथमिकता।’

3️⃣ 24 अगस्त 2025 — भर्ती प्रक्रिया पर रोक आदेश

स्थानीय अभ्यर्थियों के विरोध के बाद उच्च शिक्षा विभाग ने पूरे प्रदेश में भर्ती प्रक्रिया रोककर जांच समितियाँ गठित की थीं।

4️⃣ 17 अक्टूबर 2025 — अंतिम शासन आदेश (ESTB-101/447/2025)

प्राचार्य राधा ने इन दो लेटरों का सहारा लिया अपने बचाव करने के लिए और एडमिशन हुआ है करके बताया।

स्पष्ट आदेश —

‘सभी नियुक्तियाँ अतिथि व्याख्याता भर्ती नीति 2024 के अनुरूप की जाएँ।’

इन सभी आदेशों को दरकिनार कर कॉलेज प्रशासन द्वारा की गई नियुक्ति ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।

प्राचार्या का अचानक अवकाश पर जाना — संदेह और गहरा

नियुक्ति के ठीक बाद कॉलेज की प्राचार्या महोदया अचानक अवकाश पर चली गईं।

कर्मचारियों का कहना है कि पूरी नियुक्ति ‘पूर्व-नियोजित’ लगी और संभवतः ‘प्रशासनिक दबाव’ में की गई।

इससे पूरे मामले पर और अधिक संदेह गहरा गया है।

स्थानीय अभ्यर्थियों का गुस्सा — ‘हक़ छीना गया, नीति को धोखा’

छत्तीसगढ़ के संस्कृत स्नातकोत्तर अभ्यर्थी कहते हैं—

‘जब शासन खुद स्थानीयता नीति लागू करता है, तब सरकारी कॉलेज ही बाहरी व्यक्ति को नियुक्त कर दे—यह हमारे भविष्य के साथ खिलवाड़ है।’

स्थानीय युवाओं ने निम्न मांगें की हैं:

वेद विभाग की नियुक्ति प्रक्रिया की उच्चस्तरीय जांच हो

सूची से बाहर अभ्यर्थी की नियुक्ति तत्काल निरस्त की जाए

नया विज्ञापन जारी कर छत्तीसगढ़ के अभ्यर्थियों को मौक़ा दिया जाए

भविष्य की सभी नियुक्तियाँ पारदर्शी हों और शासनादेशों के अनुरूप हों

नियुक्ति का मुद्दा अब ‘राज्य vs परदेशियावाद’ का बड़ा प्रश्न

यह घटना एक कॉलेज की भर्ती प्रक्रिया से आगे बढ़ चुकी है।

अब यह मामला इस बात का प्रतीक बन गया है कि —✔ क्या राज्य शासन की नीतियाँ धरातल पर लागू हो रही हैं?

✔ क्या स्थानीय युवाओं का हक़ सुरक्षित है?

✔ क्या कॉलेजों में ‘परदेसी अभ्यर्थियों’ को गुपचुप तरीके से प्राथमिकता दी जा रही है?

राज्य के कई जनप्रतिनिधि भी इस मामले को गंभीरता से देख रहे हैं और जांच की मांग कर रहे हैं।

शासकीय संस्कृत कॉलेज रायपुर की साख पर सवाल

इस मामले ने कॉलेज प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगा दिया है। चूंकि नियुक्ति में —

• पारदर्शिता नहीं

• नीति पालन नहीं

• शासन की अनुमति नहीं

• सूची से बाहर के व्यक्ति की नियुक्ति

• प्रक्रिया रोक आदेश की अनदेखी

— सब शामिल है, इसलिए इसे सीधा ‘प्रक्रियात्मक उल्लंघन’ माना जा रहा है।

अगर शासन ने समय रहते हस्तक्षेप नहीं किया, तो यह पूरा मामला ‘स्थानीय बनाम बाहरी’ की बड़ी बहस का रूप ले सकता है।


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