सुशासन के नाम पर जंगलराज हम तो डूबेगे सनम..?
मालखरौदा/ तहसीलदार एवं अनुविभागीय अधिकारी, मालखरौदा सहित हल्का पटवारी एवं राजस्व निरीक्षक के खिलाफ सीमांकन सहित गलत कार्यवाही एवं जेल भेजने के संबंध में हाई कोर्ट ने 25,000/- रूपये का क्षतिपूर्ति याचिकाकर्ता को देने का आदेश पारित किया।
सक्ती ग्राम घोघरी,उप तहसील छपोरा, तहसील मालखरौदा निवासी सतीश कुमार चन्द्रा के द्वारा अधिवक्ता श्री हरिशंकर पटेल के माध्यम से माननीय उच्च न्यायालय में प्रस्तुत रीट याचिका क्रमांक 137/2024, जिसमें कि याचिकाकर्ता की ओर से उसके वादभूमि 22/5 के सीमांकन के संबंध में स्थानीय व्यक्ति दिनेश कुमार डनसेना,जो कि पुलिस विभाग का भी कर्मचारी है, के द्वारा पूर्व भूमिस्वामी पुनीराम से मिलकर उक्त वादभूमि को हडपने की मंशा से सीमांकन करवाया। जहाँ ग्राम घोघरी स्थित भूमि खसरा क्रमांक 13, जो कि मेन रोड़ है, में याचिकाकर्ता के द्वारा निर्माण होना हल्का पटवारी सहित राजस्व निरीक्षक शिवकुमार राठिया द्वारा बताया गया तथा याचिकाकर्ता के विरूद्ध उसके गलत निर्माण पर से थाना डभरा में 107, 116 जाप्ता फौजदारी की कार्यवाही तहसीलदार छपोरा बिसाहीन बाई चौहान के द्वारा करायी गई, इसके साथ ही साथ दिनेश कुमार डनसेना, जो कि स्वयं पुलिस विभाग का कर्मचारी है, उसके द्वारा अपना प्रभाव दिखाकर थाना डभरा में याचिकाकर्ता सतीश कुमार के विरूद्ध मारपीट, धमकी व गाली, गलौच का झूठी घटना पर आरोप लगाकर पुनः दिनांक 07/02/2024 को 107, 116 जा.फौ. की कार्यवाही कराते हुए गिरफ्तार कर तहसीलदार मालखरौदा संजय कुमार मिंज के पास प्रस्तुत कराया। जहाँ तहसीलदार मालखरौदा मिंज के द्वारा 25-25 हजार रूपये का 02 सॉल्वेंसी पट्टे के रूप में मांग की गई, जो उपलब्ध नहीं होने पर जेल भेज दिया गया।
याचिकाकर्ता 02 दिन जेल में रहा, उसकी ओर से प्रस्तुत पट्टे को स्वीकार कर रिहा किया गया। उपरोक्त सम्पूर्ण कार्यवाही दिनेश कुमार डनसेना के सह एवं ईशारे में हल्का पटवारी एवं नायब तहसीलदार सहित तहसीलदार मालखरौदा द्वारा की गई, जिस पर कि याचिकाकर्ता की याचिका को प्रथम दृष्टया सही पाते हुए तहसीलदार मालखरौदा के द्वारा जमानत के संबंध में मांगी गई सॉल्वेंसी को पूर्णतः गैर कानूनी कहा गया तथा याचिकाकर्ता को 25,000/- रूपये बतौर प्रतिकर 30 दिन के भीतर देने हेतु आदेशित मुख्य न्यायाधीश महोदय के डबल बेंच में निराकृत की गई, जो स्पष्ट रूप से राजस्व अधिकारियों द्वारा अपने अधिकार के दुरूपयोग के संबंध में की गई न्यायोचित कार्यवाही है।