साड़ी के आंचल के टुकड़े से बांधी गई थी पहली बार राखी, जानें कैसे हुई थी रक्षा बंधन की शुरुआत

साड़ी के आंचल के टुकड़े से बांधी गई थी पहली बार राखी, जानें कैसे हुई थी रक्षा बंधन की शुरुआत

हिंदू धर्म शास्त्रों में रक्षा बंधन त्योहार का विशेष महत्व है. ये भाई-बहन के अटूट प्रेम को दर्शाता है. इस दिन बहनें भाई की कलाई पर रक्षासूत्र बांधकर उसकी लंबी आयु की कामना करती हैं. वहीं, भाई भी बहनों को गिफ्ट देते हैं और उसकी रक्षा का वादा करते हैं. बता दें कि प्रेम और विश्वास का ये पर्व सावन पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है.

हिंदू पंचांग के अनुसार साल 2024 में रक्षा बंधन का त्योहार 19 अगस्त को मनाया जाएगा. लेकिन क्या आफ जानते हैं रक्षा बंधन का त्योहार क्यों मनाया जाता है? और इस त्योहार की शुरुआत कैसे हुई थी.

शची ने इंद्र को बांधा था रेशम का धागा

भविष्य पुराण के अनुसार एक बार देव और दानवों के युद्ध के दौरान दानव देवताओं पर भारी पड़ने लगे थे. देवताओं को पराजित होता देखकर इंद्र देव परेशान होने लगे और समस्या से हल के लिए ऋषि देवगुरु बृहस्पति के पास गए. तब देवगुरु के कहने पर इंद्रेव की पत्नी शची ने रेशम का धागा मंत्र-शक्ति से पवित्र किया और अपने पति इंद्र देव की कलाई पर बांधा. ऐसी मान्यता है कि ये सावन पूर्णिमा का दिन था. इसके बाद इंद्र ने इस युद्ध का नेतृत्व किया और देवों की जीत हुई. ऐसा कहा जाता है कि सृष्टि में ऐसा पहली बार हुआ था, जब एक पत्नी ने अपने पति की कलाई पर रक्षासूत्र बांधा था.

देवी लक्ष्मी ने भी बांधा था रक्षासूत्र

स्कंद पुराण में मां लक्ष्मी के रादा बलि को रक्षा सूत्र बांधने का वर्णन मिलता है. बता दें कि जब भगवान विष्णु ने अपने वामन अवतार में दो पग में असुरराज बलि के अधिकार की सारी आकाश, पाताल और धरती को नाप लिया था और तीसरा पग रखने के लिए उन्होंने पूछा था कि मैं तीसरा पग कहां रखूं? तब विष्णु जी ते भक्त बलि ने कहा कि भगवान आप तीसरा पग मेरे सिर पर रख दें.

राजा बलि की इस बात से प्रसन्न होकर श्री हरि ने राजा बलि को रसातल का राजा बना दिया. लेकिन बली ने इस वरजान के साथ ही भगवान विष्णु को रात-दिन अपने आंखों के सामने रहने को कहा और भगवान ने उसका ये वचन मान लिया.

वामनावतार के बाद भगवान विष्णु के बैकुंठ धाम नहीं पहुंचने पर मां लक्ष्मी चिंतित हो गईं. जब उन्हें सारी बात पता चली तो वे नारद जी की सलाह पर राजा बलि के पास गईं और रक्षासूत्र बांधकर अपना भाई बना लिया. इसके बाद उन्होंने राजा बलि से बदले में विष्णु जी को अपने साथ ले आईं. बताया जाता है कि ये घटना भी सावन माह की पूर्णिमा को हुई थी.

द्रौपदी ने बांधी थी साड़ी 

महाभारत में युधिष्ठिर के राजसूय के समय शिशुपाल मे भगवान श्री कृष्ण के अपामन की हद पार कर दी थी. तब श्री कृष्ण ने शिशुपाल का वध करने के लिए सुदर्शन चक्र उठाया. उस समय उनकी उंगली कट गई थी. ये देख द्रोपदी ने तुरंत साड़ी का आंचल फाड़ा और भगवान की उंगली पर बांध दी. संयोग से उस समय श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था. बता दें कि चीरहरण के समय भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी की लाज बचाई थी और इसी का कर्ज द्रौपदी ने आंचल बांधकर चुकाया था. ऐसी मान्यता है कि इस घटना के बाद ही बहनों द्वारा भाइयो को रक्षासूत्र बांधने की परंपरा शुरू हुई थी, जो आज देशभर में जोर-शोर से मनाया जाता है.


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